गोलमेज सम्मेलन (Golmej Sammelan ) के समय भारत के वायसराय लार्ड इर्विन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रैमजे मैक्डोनाल्ड थे.
गोलमेज सम्मेलन की आवश्यकता क्यों पड़ी जैसा कि हम जानते हैं साइमन कमीशन रिपोर्ट की अनुशंसाए स्पष्ट रूप से पूर्ण नहीं थी.
इसलिए एक गोल सम्मेलन के आयोजन किये जाने की अवश्यकता पड़ी.
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Golmej Sammelan प्रथम गोलमेज सम्मेलन
नवंबर 1930 से जनवरी 1931 तक प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन लंदन में किया गया था.
जो कि ब्रिटिश सरकार एवं भारतीयों के मध्य सामान स्तर पर आयोजित की गया था .
प्रथम वार्ता में कांग्रेस के साथ-साथ अधिकांश व्यवसायिक संगठनों ने इस सम्मेलन का विरोध किया.
वही मुस्लिम लीग ,हिंदू महासभा ,और उदारवादीयो ( लिबरल ),दलित वर्ग ,तथा ,भारतीय रजवाड़ों, ने इस सम्मेलन में भाग लिया.
इस सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधि मुख्यतः तीन भागों में विभक्त किए जा सकते हैं ।
- तीनों ब्रिटिश दल लिबरल ,कंजरवेटिव ,एवं श्रमिक दल, के प्रतिनिधि.
- ब्रिटिश भारत से ब्रिटिश सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य.
- भारत के प्रिंसी स्टेट से राजकुमार या उनके द्वारा मनोनीत सदस्य.
प्रथम गोलमेज सम्मेलन ( Golmej Sammelan) में सम्मिलित सभी दल के प्रतिनिधि केवल अपने व्यक्तिगत हितों के पक्ष में प्रयासरत रहे हैं.
इस सम्मेलन के दौरान केवल समस्याएं एवं विचारार्थ विषय ही प्रस्तुत किए गए. लेकिन कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया.
इसके पीछे एक बड़ा कारण यह माना जा सकता है कि कांग्रेस के सम्मेलन में भाग न लेने से सम्मेलन अधूरा सा हो गया था.
अंततः 19 जनवरी 1931 को बिना किसी वास्तविक उपलब्धि कि यह सम्मेलन समाप्त हो गया.
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन – Second Golmej Sammelan
यह द्वितीय गोलमेज सम्मेलन दिल्ली समझौते के प्रावधानों के अंतर्गत किया गया.
इसमें कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में गांधीजी, द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए 29 अगस्त 1931 को लंदन रवाना हुए.
यह सम्मलेन 7 सितंबर 1931 से लेकर 1 सितंबर दिसंबर 1931 तक चला था.
इस सम्मेलन में गांधीजी राजपूताना नामक जहाज में से रावना हुए थे.
गाँधी जी के साथ महादेव देसाई, मदन मोहन मालवीय जी, देवदास गांधी जी ,घनश्याम दास जी, बिरला एवं मीराबेन ,भी थे.
यद्यपि इस गोलमेज सम्मेलन से गांधी जी को कुछ विशेष प्राप्त होने की उम्मीद नहीं थी ,क्योंकि –
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की समाप्ति पर घोषणा
- दो मुस्लिम प्रांतों -उत्तर -पश्चिम सीमांत एवं सिंध का गठन।
- भारतीय सलाह कारी परिषद की स्थापना ।
- तीन विशेषज्ञ समितियों -जैसे वित्त ,मताधिकार एवं राज्य संबंधी समितियों का गठन ।
- यदि भारतीयों में सहमति नहीं हो सकी तो सर्व सम्मत सांप्रदायिक निर्णय की घोषणा ।
द्वितीय द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में सरकार भारतीयों की मुख्य मांग जैसे स्वतंत्रता पर किसी भी प्रकार का विचार करने में असफल रही.
28 दिसंबर 1931 को गांधी जी भारत लौट आये .
29 दिसंबर 1929 को कांग्रेस कार्यकारिणी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन फिर से प्रारंभ करने का निर्णय लिया.
तीसरा गोलमेज् सम्मेलन – (third Golmej Sammelan )
तीसरे गोलमेज सम्मेलन का आयोजन 17 नवंबर 1932 से 24 दिसंबर 1932 के बीच किया गया.
जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और गांधी जी ने भाग नहीं लिया. इसमें कई अन्य भारतीय नेताओं ने भागीदारी नहीं की.
पहले दो सम्मेलन की भांति इसमें भी कुछ खास हासिल नहीं हुआ. इसकी अनुशंसाए मार्च 1933 में एक श्वेत (सादे) पत्र में प्रकाशित हुई , जिस पर बाद में ब्रिटिश संसद में चर्चा हुई.
अनुशंसाए के विश्लेषण हेतु एक संयुक्त समिति गठित की गई और भारत के लिए एक नया अधिनियम बनाने को कहा गया . इस समिति ने फरवरी 1935 में एक विधेयक का मसौदा प्रस्तुत किया , जिसे जुलाई 1935 में भारत सरकार अधिनियम 1935 के रूप में लागू किया गया.
कितने गोलमेज सम्मेलन हुए थे
कुल तीन गोलमेज सम्मलेन Golmej Sammelan हुए थे. जिसे प्रथम, द्वीतीय और तृतीय गोलमेज सम्मलेन के नाम से जाना जाता है.
प्रथम गोलमेज सम्मेलन कब हुआ
प्रथम गोलमेज सम्मलेन नवंबर 1930 से जनवरी 1931 तक प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन लंदन में किया गया था.
जो कि ब्रिटिश सरकार एवं भारतीयों के मध्य सामान स्तर पर आयोजित की गया था .
दूसरा गोलमेज सम्मेलन कब हुआ था
यह सम्मलेन 7 सितंबर 1931 से लेकर 1 सितंबर दिसंबर 1931 तक चला था.
प्रथम गोलमेज सम्मेलन में किसने भाग लिया था
पहले गोलमेज सम्मलेन में ब्रिटिश सरकार एवं भारतीयों के मध्य चर्चा हुई थी.
उम्मीद है, आपको गोलमेज Golmej Sammelan समझ में आ गया होगा. यदि इससे जुड़ा कोई आपका सवाल हो तो आप कमेन्ट करके पूछ सकते हैं.
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