मानव नेत्र में निकट दृष्टि दोष और दूर दृष्टि दोष होने का क्या कारण है |

निकट दृष्टि दोष और दूर दृष्टि दोष ये दोनों आंख में होने वाली बहुत ही सामान्य समस्या है. कई बार यह समस्या उम्र बढ़ने के साथ भी दिखती है लेकिन निकट दृष्टि दोष  बच्चों में अधिक देखने को मिल रहे हैं. निकट दृष्टि दोष और दूर दृष्टि  के क्या कारण है और किस लेंस का उपयोग करके इन दोषों को दूर किया जा सकता है इन सभी तथ्यों से जुड़ी जानकारियों को हम इस लेख में देखेंगे. लेख को शुरू करने से पहले बता दें कि यह लेख दो भागो में बटा है. पहले भाग में मानव नेत्र के दोष के बारे में चर्चा की गयी है और दूसरे भाग में मानव नेत्र और उसकी संरचना की चर्चा की गयी है.

Table of Contents

निकट दृष्टि दोष और दूर दृष्टि दोष क्या है- Nika Drishti Dosh और dur Drishti Dosh

दृष्टि दोष क्या है परिभाषा

जब आंख के द्वारा किसी वस्तु की स्पष्ट प्रतिबिम्ब नही बनता है  तो इस समस्या को दृष्टि दोष कहा जाता है.  दृष्टि दोष चार प्रकार के होते हैं.

1.निकट दृष्टि दोष

यह आँखों से जुड़ी एक समस्या है. जिस व्यक्ति को निकट दृष्टि दोष की समस्या हो जाती है उसको निकट की वस्तु तो दिखायी देती है लेकिन दूर की वस्तु नही दिखायी देती है. हमारी ऑंखे 25 सेमी तक बिना किसी तनाव के देख सकती हैं. लेकिन 25 सेमी से नजदीक की वस्तु को देखने के लिए आंख पर तनाव पड़ता है. जिस न्यूनतम बिंदु को हमारी आंखे बिना किसी तनाव के देख सकती हैं उसको आंख का न्यूनतम बिंदु कहा जाता है और स्वास्थ्य आंख की न्यूनतम दूरी  25 सेमी मानी जाती है. यह समस्या अक्सर छोटे बच्चों में जिनकी उम्र 16 साल से कम होती है उनमें देखने को मिलती है. बच्चों में यह समस्या धीरे धीरे अपने आप ही ठीक हो जाती है.

निकट दृष्टि दोष का चित्र

निकट दृष्टि दोष

2.निकट दृष्टि दोष के कारण Nikat Drishti Dosh

इस दोष को निकट दृष्टयता के रूप में भी जाना जाता है. इस दोष में दूर बिंदु अनंत पर ना होकर पास आ जाता है. ऐसे में व्यक्ति कुछ मीटर दूर रखी वस्तु को तो स्पष्ट देख सकता है लेकिन अधिक दूर वस्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता है. इस दोष के उत्पन्न होने के निम्नलिखित कारण हैं .
  • अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी के अधिक हो जाना इस समस्या उत्पन्न होने का एक कारण हो सकता है.
  • नेत्र गोलक का अपने आकार से छोटे हो जाने पर भी इस समस्या के उत्पन्न होने का एक कारण हो सकता है.
  • लेंस का ज्यादा अभिसारी हो जाना या कम अपसारी होना.
  • प्रतिबिंब का रेटिना से पहले बनना
  • गोलक में लंबा पन का उत्पन्न होना

निकट दृष्टि दोष को दूर करने के उपाय

इस दोष को दूर करने के लिए व्यक्ति को एक चश्मे की जरूरत होती है. उस चश्मे में उचित अवतल लेंस लगाकर इस समस्या को दूर किया जा सकता है, अर्थात निकट दृष्टि दोष में अवतल लेंस का प्रयोग किया जाता है.

दूर दृष्टि दोष

दूर दृष्टि दोष निकट दृष्टि दोष के विपरीत होता है. इस दोष में दूर की वस्तु तो बिल्कुल स्पष्ट और साफ दिखाई देती है, लेकिन निकट रखी वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती है.  जिस व्यक्ति को दूर दृष्टि दोष की समस्या होती है, उस  व्यक्ति की आंख पास रखी वस्तु पर फोकस नहीं कर पाती है.
आंख का निकट बिंदु जो 25 सेंटीमीटर माना जाता है. इस समस्या में निकट बिंदु 25 सेंटीमीटर से दूर हो जाता है इसलिए इस समस्या में यदि किसी व्यक्ति को किताब पढ़ना होता है तो वह किताब को अपनी आंखों से दूर रख कर पढ़ता है.

दूर दृष्टि दोष का चित्र

दूर दृष्टि दोष

दूर दृष्टि दोष के उत्पन्न होने का कारण

इस दोष के उत्पन्न होने के निम्नलिखित कारण हैं –
  • अभिनेत्र लेंस की फोकस अधिक हो जाने पर यह समस्या उत्पन्न हो जाती है.
  • लेंस के कम अभिसारी होने पर यह दोष उत्पन्न हो जाता है.
  • प्रतिबिम्ब रेटिना के बाद बनता है.
  • लेंस और रेटिना के बीच की दूरी बढ़ जाती है.
  • गोलक में छोटापन आ जाता है.

दूर दृष्टि दोष का निवारण

यह दोष आँखों से जुड़ा है यदि यह समस्या किसी को हो जाती है तो उसको चश्में लगाने की सलाह दी जाती है. इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लेंस का उपयोग किया जाता है.  हमारी आंख के लिए जो निकट बिंदु 25 सेमी माना जाता है इस दोष के कारण 25 सेमी से दूर हो जाता है इसलिए निकट की वस्तुएं दिखायी नही देती है. इस दोष को दूर करने के लिए इसे उत्तल लेंस का उपयोग किया जाता है जो इस बढ़ी हुई दुरी को 25 सेमी पर फिक्स कर देता है.

आंख में कितने प्रकार के दोष हो सकते हैं

आँखों में मूल रूप से चार प्रकार के दोष देखे जाते हैं. ये दोष अलग – अलग उम्र में होते हैं. कोई दोष छोटे बच्चों में, तो कोई नौजवानों में, तो कोई वृद्धा अवस्था में देखने को मिलता है. आँखों में होने दोष निम्नलिखित हैं.

  1. निकट दृष्टि दोष
  2. दूर दृष्टि दोष
  3. जरा दृष्टि दोष
  4. दृष्टिवैषम्य

उपर्युक्त लेख में निकट दृष्टि दोष और दूर दृष्टि दोष पर पूरे विस्तार से चर्चा की गयी है. अब आइये जरा दृष्टि दोष और दृष्टिवैषम्य दोष पर भी चर्चा कर लेते हैं.

जरा दृष्टि दोष

यह दोष मांसपेशियों में ढीलापन आ जाने से आंख की समंजन क्षमता कम हो जाती है जिसके कारण ना तो पास की वस्तु दिखायी देती है ना ही दूर की वस्तु दिखायी देती है. यह दोष अधिकांशत: 45 वर्ष के बाद या वृद्धा अवस्था में होता है.

जरा दृष्टि दोष को दूर करने के उपाय

इस दोष में आंख से ना तो पास की वस्तु दिखायी देती है ना ही दूर की वस्तु दिखायी देती है ऐसे में आंख के लिए एक इसे चश्में की जरुरत होती है जो दूर की वस्तु को भी दिखाए और पास की वस्तु को दिखाये. इसके लिए एक ही चश्में में उत्तल लेंस और अवतल लेंस दोनों का उपयोग किया जाता है. चश्में में ऊपर की ओर अवतल लेंस को लगाया जाता है और नीचें की ओर उत्तल लेंस का उपयोग किया जाता है.

दृष्टिवैषम्य

यह भी एक प्रकार का आँखों में होना वाला दोष है जो आँखों को किसी भी वस्तु को देखने में समस्या उत्पन्न करता है. इस दोष में क्षैतिज और उर्ध्वाधर में फर्क करना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसमें यदि क्षैतिज रेखा दिखायी देती है तो उर्ध्वाधर रेखा दिखायी नही देती है. ऐसे ही यदि उर्ध्वाधर रेखा दिखायी देती है तो क्षैतिज रेखा नही दिखायी देती है.

दृष्टिवैषम्य दोष का कारण

हमारी आंख की कार्निया प्राकृतिक रूप से गोलाकार होती है. इस दोष के हो जाने के कारण कार्निया गोलाकार ना होकर लम्बी हो जाती है जिसके कारण क्षैतिज और उर्ध्वाधर में अंतर महसूस होना बंद हो जाता है.

दृष्टिवैषम्य दोष का निवारण

इस दोष को दूर करने के लिए बेलनाकार लेंस का उपयोग किया जाता है.

आइये अब अपने दूसरे भाग की चर्चा करते हैं. इस भाग में मानव नेत्र एवं उसकी संरचना पर चर्चा की गयी है.

मानव नेत्र

मनुष्य की  नेत्र एक गोले के सामान होता है जिसमे नेत्र के सभी भाग सुरक्षित रहतें हैं

मानव नेत्र के भाग

व्यक्ति की नेत्र में कई भाग पाए जाते हैं जिनके उपयोग निम्नलिखित हैं

1 गोलक

इसी के द्वारा ही मानव की आंख एक छोटे से दृढ गोले में बंद रहती है, जिसे गोलक कहते हैं.

2 दृढ पटल

यह आंख का सबसे बाहरी भाग होता है. यह श्वेत तथा आपरदर्शी होता है. इसी में  नेत्र सुरक्षित रहती है.

3 रक्तक पटल

यह दृढ पटल के नीचे रहता है और साथ ही रंगीन पारदर्शी परत होता है. इस भाग में प्रकश का कुछ अवशोषण भी होता है.

4 कार्निया

यह गोलक के सामने का उभरा हुआ भाग होता है इसी से प्रकाश नेत्र के अंदर प्रवेश करता है. अधिकांश अपवर्तन कार्निया से ही होता है. कार्निया का अपवर्तनांक 1.34 होता है.

आइरिस

कार्निया के भीतर एक रंगीन आपारदर्शी परत होती है जिसे आइरिस कहा जाता है. इसका रंग अलग अलग देश के लोगों का अलग अलग होता है. आयरिस के बीच में एक छोटा सा छिद्र होता है जिसे पुतली कहते हैं. आइरिस अँधेरे में पुतली को फैला देता है और साथ ही जब प्रकाश की मात्र तेज होती है to सिकोड़ लेती है. इसके द्वारा ही प्रकाश की तीव्रता पर नियंत्रण स्थापित किया जाता है.

जलीय द्रव

लेंस और कार्निया के बीच में में नामक युक्त द्रव भरा होता है जिसका अपवर्तनांक 1.3 होता है. इसके द्वारा को अपवर्तन की घटना होती है.

सिल्यरी पेशी

लेंस इसी पेशी के सहारे टिका होता है. इसके द्वारा लेंस की क्षमता घटती और बढती है.

नेत्र लेंस

यह एक उत्तल लेंस होता है जो प्रोटीन का बना होता है. इस लेंस में अंदर की ओर जाने पर इसका अपवर्तनांक बढ़ता जाता है. इसका अपवर्तनांक 1.437 होता है. इसी में ही निकट दृष्टि दोष और दूर दृष्टि दोष की समस्या उत्पन्न होती है.

रेटिना

यह मानव नेत्र का सबसे भीतरी भाग होता है. इसे आंख का पर्दा भी कहते हैं. इसी पर ही वस्तु का वास्तिविक और उल्टा प्रतिबिम्ब बनता है.

पीत बिंदु

रेटिना पर एक पीले रंग की पेशी पायी जाती है जिसे पीत बिंदु कहते हैं. यह प्रकाश का अधिक सुग्राही होती है. इस पर बना प्रतिबिम्ब अधिक स्पष्ट होता है.

अंध बिंदु

रेटिना पर एक रंगीन पेशी होती है, यह प्रकाश का सुग्राही नही होता है.

आंख का निकट बिंदु

वह निकटतम बिंदु जिस पर आंख बिना किसी तनाव के देख सके, उसे आँख का निकट बिंदु कहा जाता है. यह निकट बिंदु 25 सेमी की दूरी पर होता है.

आंख का दूर बिंदु

वह अधिकतम बिंदु जहा तक आंख देख सकती है उसे आंख का दूर बिंदु कहा जाता है.

 

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