वनों के प्रकार का संबंध मिट्टी और वर्षा से हैं. एक स्थान से दूसरे स्थान जाने पर जैसे मिट्टी और वर्षा में बदलाव होता जाता है, वैसे ही वनस्पतियों में विभिन्नता देखने को मिलती है. किसी स्थान पर वर्षा अधिक होती है तो उन स्थानों पर वनों की विविधता अधिकता अधिक देखने को मिलती है. वन जल की प्राप्ति के लिए अपने आप को परिवर्तित करते रहते हैं. इतना ही नही वन अपने आपको मौसम के अनुसार भी अपनी आकृति में परिवर्तन करते हैं.
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भारत में पाए जाने वाले वनों के प्रकार
जिस प्रकार हमारे देश में कई प्रकार के मौसम, भौगोलिक दशाएं, और कई प्रकार की बोलियां पाई जाती हैं, वैसे ही हमारे देश में विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे भी पाए जाते हैं. किसी स्थान पर जोड़ीदार पत्ती वाले वन तो कहीं पर नुकीले पत्ती वाले वन पाए जाते हैं. इतना ही नहीं कहीं-कहीं घास की अधिकता देखने को मिलती है तो कहीं केवल झाड़ियां ही उगती हैं,
हमारे देश में कुल पांच प्रकार के वनों की प्रधानता देखने को मिलती हैं जो निम्नलिखित हैं.
1 उष्णकटिबंधीय वर्षा वन या सदाबहार वन
2 उष्णकटिबंधीय मानसूनी या पतझड़ वन
3 उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती या मरुस्थलीय वन
4 पर्वतीय वन
5 मैंग्रोव वन
आइए इन सभी वनों को अब विस्तार पूर्वक समझने की कोशिश करते हैं. सबसे पहले आइए जानते हैं वर्षा वन के बारें में.
उष्णकटिबंधीय वर्षा वन
जैसा कि उष्णकटिबंधीय वर्षा वन के नाम से ही ज्ञात होता है कि इस प्रकार के वनों को अधिक तापमान और अधिक वर्षा की जरूरत होगी. इससे यह समझा जा सकता है कि इस प्रकार के वन पहाड़ी क्षेत्रों में या मैदानी क्षेत्रों में अधिक पाए जाते होंगे. इस प्रकार के वनों के लिए वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक होनी चाहिए, तथा उस स्थान का तापमान भी अधिक होना चाहिए. इस प्रकार के वन साल भर हरे भरे रहते हैं, इन वनों को साल भर जल की पूर्ति होती रहती है इसलिए इस प्रकार के वन में पतझड़ देखने को नहीं मिलता है. अर्थात इस प्रकार के पेड़ अपनी पत्तियां नहीं गिराते हैं. यह साल भर हरे भरे रहते हैं इसलिए इस प्रकार के वनों को सदाबहार वन भी कहा जाता है.
सदाबहार वनों के उदाहरण
उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में देवदार के वृक्ष, ताड़ के वृक्ष, महोगनी , रबड़, नारियल, सिनकोना आदि विशेष रूप से देखने को मिलते हैं.
सदाबहार वनों की कुछ प्रमुख विशेषताएं
- इस प्रकार के वन अन्य वनों की तुलना में अधिक सघन देखने को मिलते हैं. सदाबहार वनों में वनों की विविधता अधिक होने के कारण, यह वृक्ष प्रकाश संश्लेषण के लिए अपने लंबाई को बढ़ा लेते हैं, जिसके कारण सदाबहार वन के वृक्ष अधिक लंबे होते हैं.
- इन पेड़ों की लकड़ियां अधिक कठोर होती है.
- सदाबहार वनों में जैव विविधता एवं वनस्पति की विविधता अधिक देखने को मिलती है.
सदाबहार वन भारत में चार स्थानों पर अधिक विद्यमान हैं जो निम्नवत हैं
- हिमालय का तराई क्षेत्र
- पश्चिमी घाट
- शिलांग का पठार
- अंडमान निकोबार दीप समूह
उष्णकटिबंधीय मानसूनी या पतझड़ वन
मानसूनी या पतझड़ वन ऐसे वनों को कहा जाता है जो मानसूनी बारिशों में हरे भरे रहते हैं और पतझड़ आने पर जल की आपूर्ति ना होने के कारण अपनी पत्तियों को गिरा देते हैं. इस प्रकार के वन भारत में उन स्थानों पर पाए जाते हैं, जिन स्थानों पर साल भर वर्षा ना होकर मानसून के द्वारा वर्षा होती है. इन स्थानों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, झारखंड आदि क्षेत्र आते हैं. इन वनों के लिए वार्षिक 100 से 200 सेंटीमीटर की वर्षा की जरूरत होती है.
पतझड़ वनों के उदाहरण
इन वनों में शीशम के पेड़, आम, आंवला, नीम आदि प्रमुख है.
पतझड़ वनो की प्रमुख विशेषता
- इस प्रकार के वृक्षों की लकड़ियां लचीली होती हैं, जिसके कारण इसकी उपयोगिता आर्थिक रूप से अधिक होती है.
- इन वृक्षों से जलावन की लकड़ी प्राप्त की जाती है.
- इन वृक्षों से जानवरों के लिए चारे की प्राप्ति होती है.
- पतझड़ वन उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार मैं अधिक देखने को मिलते हैं
मरुस्थलीय वन
एक ऐसा क्षेत्र है जहां पर वार्षिक वर्षा 70 सेंटीमीटर से भी कम होती है, उस क्षेत्र को मरुस्थलीय क्षेत्र कहते हैं. मरुस्थली क्षेत्रों में अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम वर्षा देखने को मिलती है, इसलिए इन स्थानों पर उगने वाले पेड़ पौधों को कम वर्षा की जरूरत होती है. मरुस्थलीय वनों की छाल मोटी होती है और साथ ही इनकी जड़ें अन्य वृक्षों की तुलना में अधिक गहराई तक फैली होती हैं. इन वृक्षों में पत्तियों की मात्रा कम देखने को मिलती है. यह वृक्ष राजस्थान,गुजरात जैसे क्षेत्रों में अधिक विद्यमान हैं.
मरुस्थलीय वनों के उदाहरण
बबूल के पेड़, खजूर के पेड़, खेजड़ी, कीकर आदि.
मरुस्थलीय वनों की प्रमुख विशेषताएं
ये वन ऐसे स्थानों पर पाए जाते हैं जहां पर वर्षा कम होती है, जिसके कारण इनकी पत्तियों पर कांटे नुमा आकृतियों का निर्माण हो जाता है जो पौधे में नमी के संतुलन को बनाए रखती हैं.
मरुस्थलीय वनों की प्रजातियों में खेजड़ी नामक एक वृक्ष पाया जाता है, जिसकी छाल की सहायता से मलेरिया नामक बीमारी की दवा बनाई जाती है.
पर्वतीय वन
इसके नाम से ही ज्ञात होता है कि इस प्रकार के वन पर्वतीय प्रदेशों में पाए जाएंगे. यह वन हिमालय पर पाए जाते हैं. पर्वतों पर पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर जाने पर तापमान में गिरावट होती है और पर्वतों पर बहुत सी जगह बर्फ भी जम जाती है, जिसके कारण पर्वतों पर सदाबहार और पतझड़ वाले वनों की अधिकता देखी जाती है. पर्वतों पर ही मांस और लाइकेन पाए जाते हैं. बर्फीले क्षेत्रों में टुंड्रा नामक वनस्पति पाई जाती हैं. एक समय के बाद अधिक ऊंचाई की ओर जाने पर वृक्षों की प्रजातियां समाप्त हो जाती हैं.
पर्वती वनस्पतियों की उपयोगिता
पहाड़ों पर निवास करने वाले मनुष्यों के लिए इन वनस्पतियों से जलावन की लकड़ी प्राप्त होती है.
पहाड़ों पर बर्फ के नीचे मांस और लाइकेन पाए जाते हैं, जो बर्फ के पिघलने पर सतह पर दिखने लगते हैं और इनके द्वारा पशुपालन बढ़ावा मिलता है क्योंकि इनसे चारों की व्यवस्था हो जाती है.
मैंग्रोव वनस्पति
इस प्रकार की वनस्पतियां ऐसे स्थानों पर पाई जाती हैं जहां पर दलदल होता है. यह वनस्पतियां अधिकतर समुद्र के किनारे दलदलीय भागों में पाई जाती हैं. इस वनस्पति के विकास के लिए खारे पानी की जरूरत होती है. इसलिए यह वनस्पतियां अधिकतर समुंद्र के किनारे वाले भागों में देखने को मिलती हैं.
मैंग्रोव वनस्पति की उपयोगिता
- ये वनस्पतियां अधिकतर समुद्र के किनारे वाले भागों पर पाई जाती हैं जो किनारे के कटाव को कम करते हैं.
- इनके द्वरा समुद्र में निवास करने वाले जीवो के लिए भोजन उपलब्ध कराते हैं.
- इन वनस्पतियों की सहायता से प्राकृतिक आपदा में जैसे, सुनामी, बाढ़ की तीव्रता को कम किया जा सकता है.
- यह वनस्पति समुद्रीय पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में सहायक होती हैं.
वनों से होने वाले प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ
सभी ग्रहों में पृथ्वी एक ऐसा ग्रह है जो जीवन का एक केंद्र है और पृथ्वी पर जीवन तभी तक संभव है, जब तक यहां पर पेड़ पौधे विद्यमान हैं. मनुष्य के लिए जैसे सभी कार्य जरूरी हैं, वैसे ही मनुष्य के जीवन के लिए वनों की उपस्थिति भी बहुत जरूरी है. मानव इन वनस्पतियों से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ दोनों को प्राप्त करता है. आइए वनों के महत्व एवं वनों से होने वाले प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ को विस्तार पूर्वक समझते हैं.
वनों के महत्व
- वन मृदा संरक्षण एवं जल संरक्षण का एक प्रमुख कारक है.
- वनों के द्वारा मृदा के अपरदन को कम किया जाता है क्योंकि वनों की जड़ें भूमि के काफी नीचे तक फैली होती हैं जो मिट्टियों को आपस में जकड़ कर रखती हैं.
- वनस्पतियों के द्वारा वर्षा की संभावना में बढ़ोतरी होती है.
- पृथ्वी पर जैव विविधता जितनी अधिक होगी, पृथ्वी का संतुलन उतना ही अधिक होगा और जैव विविधता के लिए वनस्पतियों का पृथ्वी पर विद्यमान रहना बहुत जरूरी है. बिना वनस्पति के जैव विविधता की कल्पना करना असंभव है.
- वनस्पतियों से ही जीवो के लिए प्राणवायु यानी कि ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है. पृथ्वी पर जब तक वनस्पतियां विद्यमान है तभी तक ऑक्सीजन की प्राप्ति होगी और तभी तक पृथ्वी पर जीवन संभव रहेगा.
- कई वनों के द्वारा बहुत ही महत्वपूर्ण वनस्पतियां प्राप्त की जाती हैं, जिसके कारण चिकित्सा क्षेत्र में तेजी आई है.
- वनस्पतियों के द्वारा पृथ्वी के तापमान को संतुलित किया जा सकता है क्योंकि वनस्पतियां कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अवशोषित करती हैं और ऑक्सीजन का उत्सर्जन करती हैं.
- इनके द्वारा वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है.
- वनस्पतियां मनुष्यों के लिए एक आर्थिक संसाधन भी उपलब्ध कराने का कार्य करती हैं.
वनों से मनुष्यों को होने वाले प्रत्यक्ष लाभ
- इनके द्वारा मनुष्यों को कई प्रकार के महत्वपूर्ण फल मिलते हैं.
- जलावन की लकड़ी प्राप्त होती है.
- पशुपालन के लिए चारे की व्यवस्था होती है.
- वनों के उपयोग से मनुष्य कई प्रकार की आर्थिक गतिविधियां संपन्न करता है.
- गांव देहात में जिन क्षेत्रों में आज भी बिजली की व्यवस्था नहीं हो पाई है, गर्मियों के दिनों में इन्हीं वनों की छाया में लोग आराम करते हैं.
- कई महत्वपूर्ण औषधियों की प्राप्ति होती है.
वनों के अप्रत्यक्ष लाभ
- इनकी सहायता से मृदा अपरदन जैसी गंभीर समस्या को पृथ्वी पर कम किया जा सकता है.
- इन वृक्षों के सूखे पत्ते जिन स्थानों पर गिरते हैं, वहां पर तापमान अधिक होने के कारण ह्यूमस का निर्माण होता है. ह्यूमस मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बढ़ाते हैं
- इनके द्वारा ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है एवं कार्बन डाइऑक्साइड गैस का अवशोषण होता है जो मनुष्य के जीवन के लिए यह क्रिया बहुत जरूरी है.
- जैव विविधता को बढ़ाते हैं.
पृथ्वी की सतह पर वनों के प्रकार जितने अधिक होंगे, पृथ्वी पर जीवन उतना ही अधिक संभव होगा. यह वनों से हमें कई प्रकार के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ की प्राप्ति होती है. अतः भारत में पाए जाने वाले वनों के प्रकार में वृद्धि के लिए सरकार एवं स्थानीय लोगों को अपनी भागीदारी अवश्य पेश करनी चाहिए.
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